विश्व की सबसे लम्बी पट्टचित्र पेंटिंग में श्री कृष्णा की जीवन गाथा :- अजीत स्वेन जी के साथ एक साक्षात्कार
यह पेंटिंग “dedicated to people” नामक संस्था ( विभिन्न तरह की कलाओ और कलाकारों के लिए एक प्लेटफार्म) जो कि 2004 से विभिन्न कला क्षेत्र के कलाकारों के लिए कार्यरत है और इसी संस्था के फाउंडर सेक्रेटरी “श्री अजीत जी” के संरक्षण में बनवाई गई है। तो आइए जानते है विश्व की सबसे बड़ी पट्टचित्र पेंटिंग के बारे में “अजीत जी” से इस पेंटिंग के बारे में एक ख़ास बातचीत के दौरान :-
विश्व की सबसे लम्बी पट्टचित्र पेंटिंग
भारत जैसा विविधताओं वाला देश शायद ही दूसरा कोई ऐसा हो जहाँ पर समय-समय पर कुछ न कुछ रोमांचित और हैरान कर देने वाला घटित होता ही रहता है।
ऐसे में आज हम बात करने वाले है “पट्टचित्र पेंटिंग” के बारे में जो कि उड़ीसा की लोक कला के रूप में जानी तो जाती है पर इसमे ऐसा नया क्या है?
पट्टचित्र तो सभी जान रहे होंगे पर विश्व की सबसे बड़ी और लम्बी पट्टचित्र पेंटिंग के बारे में अभी सुन रहे होंगे जो कि बनाई गई है उड़ीसा के पट्टचित्र कलाओं में पारंगत और सदियों से इस कला को बनाते चले आ रहे स्थानीय कलाकारों द्वारा।
1. “अजीत जी” सबसे पहले तो ये बताये की पट्टचित्र का अर्थ क्या है और किस प्रकार की पेंटिंग है?
उत्तर – पट्टचित्र शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है पट्ट अर्थात “हैंडमेड कैनवस” और चित्र अर्थात आरेख (ड्राइंग)।
इसका कैनवस तैयार करने के लिए सूती साड़ियों पर इमली के बीज के पेस्ट में स्टोन पाउडर मिलाकर सूती साड़ियों को हार्ड करने के लिए लगाया जाता है। बाद में उसपर स्टोन पॉलिश की जाती है ताकि उसपर आरेख आसानी से बनाया जा सके।
2.विश्व की सबसे बड़ी यह पट्टचित्र पेंटिंग किस थीम पर बन रही है?
उत्तर – पट्टचित्र में अधिकतर हम पौराणिक चित्रों को दर्शाते हैं जैसे – कृष्णा कथा, गणेश कथा, हिन्दू देवी-देवता, नरसिंहा और दशावतार आदि। इस पेंटिंग के बारे में बात करें तो इसमें हमारे स्थानीय कलाकारों ने “कृष्ण जी के जीवन की 14 लीलाओं” को बखूबी दर्शाया गया है जिस पर की गई मेहनत सराहनीय है। इसकी लम्बाई 35 फीट और चौड़ाई 3 फ़ीट है।
विश्व की सबसे लम्बी पट्टचित्र पेंटिंग
3. किन लोगों द्वारा इसे बनाया गया है और इसमें कौन-कौन से और लोग शामिल है?
उत्तर- सबसे पहले तो मैं ये बताना चाहूँगा कि इस पेंटिंग में जो भी कलाकारी, रंगों का अनुपात, आलेखन आदि सब कुछ उड़ीसा के स्थानीय कलाकारों द्वारा किया गया है। ये सभी कलाकार Dedicated to people नामक संस्था से जुड़े हुए है जो संस्था विभिन्न प्रकार की कला और कलाकारों के लिए काम कर रही है। प्रोजेक्ट का पूरा करने का कार्यभार और जिम्मेदारी मेरे द्वारा ली गई थी इसलिए इस पेंटिंग को मेरी देख-रेख में पूरा किया गया है। इसमे कुल 5 सीनियर और जूनियर कलाकारों ने मिलकर इस पेंटिंग को पूरा किया है जैसे- बाउबन्धु जेना, उर्वशी सेनापति, लालकिशोर बारिक, श्रद्धांजलि प्रधान, चिन्मय बारिक आदि लोग इसमे शामिल है।
4.आपको इसे बनाने के लिए प्रेरणा कहाँ से मिली और कितना समय लगा?
उत्तर- इस पेंटिंग के पीछे की प्रेरणा का श्रेय मैं “इंटरनेशनल इंडियन फोक आर्ट गैलरी” के फाउंडर “सेन्थिल वेल जी” को देना चाहूंगा जिन्होंने ऐसा कुछ बनवाने के बारे में सोचा और पूरा करने के लिए मुझ तक पहुँचे भी और मुझे तथा मेरी संस्था Dedicated to people(जो कि 2004 से कार्यरत है) के लोक कलाकारों को इस प्रोजेक्ट को पूरा करने का मौका दिया और इस पेंटिंग को बनाने के लिए हमारी टीम को कुल 35 दिन का समय लगा।
5. इस पेंटिंग को पूरा करने के लिए स्थानीय कलाकारों के अलावा क्या किसी एक्सपर्ट की भी सहायता पड़ी?
उत्तर- सबसे पहले तो यही कहना चाहूंगा कि यह पेंटिंग बहुत प्रसिद्ध कलाकार द्वारा न बनाई जाकर भारत के उड़ीसा राज्य के स्थानीय लोक कलाकारों द्वारा बनाई गई है। जरूरी नही है कि सिर्फ बड़े-बड़े अवार्ड से सम्मानित कलाकार ही कुछ नायाब और अद्भुत कलाकृतियों को अस्तित्व में ला सकते है बल्कि छोटे-छोटे गांवो और कस्बों में रह रहे ज़मीनी स्तर के कलाकार भी ऐसी अद्भुत और नायाब कलाकृति की रचना कर उन्हें एक अद्वितीय रूप दे सकते है। जरूरत है तो बस संसाधनों की, विश्वास की और पहुँच की कि लोग उन तक और वो लोगों तक अपनी बात और अपनी तराशी गई कला को पहुँचा सके।
6. इस पेंटिंग को बनाते हुए किन चीज़ों का प्रयोग हुआ है?
उत्तर- यह पेंटिंग तसर सिल्क के कपड़े पर बनाई गई है। और इसमें ऐक्रेलिक रंगों का प्रयोग किया गया है।
7.इस पेंटिंग को बनाने में किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
उत्तर- देखिए, किसी भी प्रोजेक्ट को पूरा करने के सफर में कुछ-न-कुछ चुनौतियों का सामना तो करना ही पड़ता है
तभी वो प्रोजेक्ट थोड़ा और रोमांचक बनता है। बाकी सबसे बड़ी चुनौती तो समय की थी क्योंकि इस पेंटिंग को पूरा करने के लिए लगभग हमारे पास कुल 1.5 महीना ही था।
उसी में हमे योग्य कलाकारों की टीम बनाना, सभी संसाधन जुटाना,समय-समय पर चेक करते रहना, चीज़ों का मैनेजमेंट और फिर समय रहते पेंटिंग को पूरा करना। यह सब खुद में ही काफी चुनौतिपूर्ण था हमारे लिए। चूंकि टीम में अधिकतर स्थानीय, कम शिक्षित और नॉन-टेक्निकल कलाकार थे तो उनसे समय पर काम खत्म करवाने में थोड़ी मुश्किले आई। बाकी काम की क़्वालिटी को बनाये रखना फिर उन्हें समझाना, उनके साथ सामंजस्य बैठाना सब कुछ थोड़ा चुनौतियों से भरा था पर परिणाम अच्छा आये तो मेहनत सफल हो जाती है तो बस इस बात की खुशी है।
8.इस पेंटिंग से लोगो को आप क्या मैसेज देना चाहते है?
उत्तर- सही बताऊ तो ये देखकर काफी अच्छा लगता है कि भारत की प्राचीन हो चुकी इन लोक कलाओं को जानने के लिए आज भी लोगो में उत्सुकता और जिज्ञासा है। मेरे जैसे कई लोग इन विलुप्त हो चुकी कलाओं को फिर से उभारने में लगे हुए है और न कि केवल भारत बल्कि विश्व स्तर तक इसे पहुँचाने के प्रयास में है। इस पेंटिंग का मैसेज यही है कि विलुप्त हो रही भारत की लोक कलाओं को फिर से अस्तित्व में लाया जाए और उन्हें जीवित रखने का पूरा प्रयास जारी रहे तथा लोग भारतीय पौराणिक कथायें और अपनी भारतीय संस्कृति को यूँ ही विश्व स्तर तक पँहुचाते रहें।
9. इस पेंटिंग का उद्घाटन पहली बार कहाँ किया जा रहा है?
उत्तर- इसका उद्घाटन कर्नाटक के बैंगलोर शहर में चित्र कला परिषद में होने वाले इंडियन फोक आर्ट एक्सहिबिशन और वर्कशॉप में किया जा रहा है जो कि “इंटरनेशनल इंडियन फोक आर्ट गैलरी,ऑस्ट्रेलिया (IIFAG)” द्वारा आयोजित कराया जा रहा है।
10.आने वाली युवा पीढ़ी जो लोक कला क्षेत्र से जुड़ी हुई है उन्हें आप क्या मैसेज देना चाहते है?
उत्तर- जी, मैं आने वाले देश के भविष्य और युवा पीढ़ी को यही सन्देश देना चाहूँगा कि वे अपनी प्राचीन संस्कृति और लोक कलाओं के बारे में पूर्ण रूप से समझे और जाने जिससे हमारी और हमारे देश भारत की पहचान है और यदि कला में रुचि है तो इसमें बतौर अपना करियर भी स्थापित कर सकते है। भारत सरकार की तरफ से भी ऐसी काफी प्रदर्शनियां और इवेंट्स आयोजित होते रहते है और निजी स्तर पर भी होते रहते है जिसमे आप इस तरह की कला को दुनिया के सामने प्रदर्शित कर सकते है और कलाओ को प्लेटफार्म देने में सहायक रहते है तथा हर स्तर के अवार्ड्स जैसे स्टेट अवार्ड्, नेशनल अवार्ड्, शिल्प गुरु अवार्ड्, पद्मभूषण अवार्ड् आदि पुरस्कारों से नवाज़ा जाता है। इस कलाओं के जरिये अपनी आजीविका भी आराम से चलाई जा सकती क्योंकि इंटरनेशनल और नेशनल लेवल मार्केट में इन लोक कलाओं और इनसे जुड़े आइटम्स की काफी डिमांड है और लोगो का आकर्षण भी काफी हद तक बढ़ रहा है।
बात करें यदि हम भारत के इतिहास में पट्टचित्र पेंटिंग के उत्पत्ति की तो यह मूलतः उड़ीसा में स्थित भगवान जगन्नाथ पुरी के जगन्नाथ संस्कृति से सम्बंधित है। उस समय आम तौर पर जगन्नाथ मन्दिर के अंदर और बाहर की दीवारों पर रुपांकनो को चित्रित किया गया था।
फिर यह धीरे-धीरे पंचकुशी में पुरी-धाम के अन्य मंदिरों में भी बनाई और सराही जाने लगी। इसी प्रकार यह उड़ीसा के अन्य मन्दिरों में भी अपना ली गई। बाद में इसकी बढ़ती लोकप्रियता के साथ लोग इसे कागज़ों और अन्य पटलों पर उतारने का प्रयास करने लगे और फिर धीरे-धीरे कपड़े पर बनाई जाने लगी अलग-अलग तरह के प्रयोगों के साथ। इसका नाम पट्टचित्र पड़ा क्योंकि अधिकतर ये कड़े कपड़े पर या दीवारों पर चित्रित की जाती है।
जिसे आज हम “पट्टचित्र पेंटिंग” के नाम से जानते है। इसमे अधिकतर आपको कृष्णा की जीवन शैली और अन्य हिन्दू देवी देवताओं की कहानियाँ चित्रित मिलेंगी।
अजीत जी से हुई विश्व की सबसे बड़ी और लम्बी पट्टचित्र पेंटिंग को लेकर ख़ास बात-चीत के दौरान ये पता चलता है कि भारत मे लोक कलाओं को लेकर काम करने वाले कलाकारों की आज भी कमी नही है पर उनकी चुनौती पूर्ण जीवन-शैली भी चिंता का विषय है।
भारत की लोक कलाओं के विलुप्त होने का कारण युवाओं और पढ़े-लिखे लोगो में इनकी कम जानकारी होना है। स्थानीय कलाकारों और आम जनता के बीच इन्फॉर्मेशन और कम्युनिकेशन की एक गहरी खाई है और इसी खाई में विलुप्त हो जाती है हमारी लोक कलायें।
अंततः कलाकारों को अपनी आजीविका चलाने के लिए न चाहते हुए भी अपनी इन लोक कलाओं का साथ छोड़ना पड़ता है। अतः हमें जरूरत है तो कलाओं को नई जेनरेशन तक पहुँचाने की ताकि वो इन कलाओं को अपनी शिक्षा-दीक्षा, अपनी प्रतिभा और अपने पैशन से भारत की संस्कृति और लोक कलाओं को फिर से पुनर्जीवित कर इसे संरक्षित कर सकें।
आर्टिकल पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद! आशा है आपको पसन्द आया होगा। कृपया अपनके सुझाव कमेंट बॉक्स में लिखें।।
One comment for “विश्व की सबसे लम्बी पट्टचित्र पेंटिंग”
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